Tuesday, March 28, 2017 | 7:44:00 PM
"मैं हूँ कितनी अकेली वो ये जानते
मेरे बेरंग जीवन को पहचानते ---"
अगरतला से सारे संगी साथी
साथ साथ आये
कलकत्ता एयरपोर्ट से अपनी
राह चले गये
मै दिल्ली की बाट जोहती
हर आने जाने वाले को चुपचाप देखती
बहुत सारी हमउम्र औरतें
कीमती साडी में लिपटी
हाथों में बैग लिये अकेली
इधर उधर घूमती
मेरी ही तरह किसी फ्लाइट का रास्ता देखती
सोचती हूँ
कैसी उम्र होती है ये भी
सब कुछ रहते भी चेहरे पे बेचारगी
बेबसी सी खेलती
डर जाती हूँ कहीं उनकी आँखों में भी
मेरे चेहरे की बेबसी न दिखती हो
कहीं मै भी उनकी तरह लाचार तो नही
ऑंखें कस कर बंद कर लेती हूँ
क्या अकेलापन इतना भयावह होता है
हाथों में पड़ी कलम को मुट्ठियों में भींच
छाती से लगा लेती हूँ
तुम मेरे साथ हो , मेरी संगिनी
मेरी हमसफ़र -----------
डॉ शेफालिका वर्मा
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