Tuesday, January 17, 2017 | 11:43:00 PM
"मौसम"
सुबह-सुबह की धूप
जाने कहाँ चली जाती है..,
कोहरे की चादर ओढ़े
ठिठुरती सी फिजा,
स्याह बने पेड़-पौधे
हाथ बाँधे चुपचाप खड़े होते हैं..,
पत्तों पर ढलकती
ओस की बूँदें
अंदर की रूह तक भिगो देती हैं...,
कोमल,मुलायम सी घास
नरमी का अहसास कराती हैं..,
छोटे-छोटे गमलों में
खिलते-हँसते फूल
ठंडे अहसासों पर
मुस्कुराहट की गर्मी बिखेर देते हैं..,
फिर, चारों तरफ
फैली कोहरे की सफेदी
रंगीनियों में बदल जाती है...,
और,
कहीं से धुंध को चीर कर
पीली सी गर्म धूप
मन के आंगन में आ गिरती है..,
सचमुच,
मौसम तो हमारे अंदर ही होता है..।
अर्चना अनुप्रिया।
Posted By Archana Anupriya