Tuesday, February 21, 2017 | 7:25:00 PM
जब जब भी तुम मेरे समीप आते हो
छू कर ना जाने कब
उर में मधु - मधुर पुलक भर देते हो
न जानू कितने वचन याद दिलाते हो ...
तुम्हारे मृदुल स्नेहिल संस्पर्श की तरंगे
ह्रदय में बेसुधि की सिन्धु बन लहर उठाती है
मंत्रमुग्ध मेरा कवि उसमे ड़ूब जाता है
मै खड़ी अकेली असहाय अवाक्
अनिवर्चनीय अनुभूति की कोमल कोमल
कली चुन
उसे गीतों में गूंथने के लिए
सजा कर रखने के लिए
छंद खोजती रह जाती हूँ
इस चित्र विचित्र विराट प्रेम को
महसूसती रह जाती हूँ.......
डॉ शेफालिका वर्मा
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