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कॉफी का प्याला

Tuesday, March 28, 2017 | 7:31:00 PM

“कॉफी का प्याला”

मेघा अपनी तारीफ में बोले ही जा रही थी--”मैंने अपनी जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं, पर कभी हिम्मत नहीं हारी। दुनिया चाहती थी कि मैं टूट जाऊँ पर मैंने सबको बता दिया कि पत्थर की हूँ मैं, इतनी आसानी से टूट नहीं सकती। हर कदम पर मैंने स्वयं खुद को सँभाला है। कितनी लड़कियाँ इतना कर पाती हैं आजकल….?”अपने पति और ससुराल को छोड़कर अलग रहने वाली मेघा बड़े शान से अपनी माँ को अपनी आपबीती बता रही थी। मेघा की माँ एकटक अपनी बेटी के चेहरे को निहार रही थी, जिसपर अहंकार साफ झलक रहा था।
मेघा हमेशा से ही जिद्दी थी। उसे लगता था कि वह जो भी कर रही है ,वही सही है। माँ ने समझाया--”बेटा, दूसरों पर दोष लगाना और खुद को सही बताना तो बड़ा आसान होता है, पर तुम सचमुच सही हो या नहीं-ये तो तुम्हारा जमीर ही बता सकता है।” मेघा बिफर गयी--”क्या माँ तुम भी… तुम्हें तो गर्व होना चाहिए कि तुम्हारी बेटी इतनी स्ट्राँग है।” माँ ने कोई जवाब नहीं दिया। वह मेघा को किचन में ले गयीं। गैस जलाकर तीन बर्तनों में पानी उबलने को रखा। एक बर्तन में गाजर डाला, दूसरे में अंडा डाला और तीसरे बर्तन में कॉफी के दाने डाल दिए,और फिर मेघा के साथ बैठकर इधर-उधर की बातें करने लगीं। मेघा को माँ का बर्ताव कुछ अजीब सा लगा पर वह अपने गुणगान में लगी रही।
दस मिनट के बाद माँ उठीं और गैस बंद कर दिया।उबले गाजर और अंडे को एक प्लेट में निकाला और फिर कॉफी प्याले में भरकर मेघा को पीने के लिए दिया। मेघा कॉफी पीने लगी। माँ ने पूछा-”कैसी लगी कॉफी ?” मेघा ने कहा--”बहुत अच्छी है, पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि तुम कर क्या रही हो ?” माँ ने कहा--”बेटा, मैं तुम्हें जिंदगी का फलसफा समझाना चाह रही हूँ। गाजर, अंडा और कॉफी-तीनों अलग -अलग गुण वाली चीजें होकर भी एक तरह की परिस्थिति से गुजरे हैं। तीनों ने बराबर ताप सहा, एक जैसे ही विपरीत परिस्थिति से लड़े हैं लेकिन तीनों की प्रतिक्रिया अलग-अलग हुई है। गाजर ,जो देखने में तो कठोर लगता था, विपरीत परिस्थिति आते ही नरम हो गया,एक सीमा से ज्यादा आँच को बर्दाश्त नहीं कर पाया और अंदर ही अंदर गलता रहा।

अंडा,जो पहले नाजुक था,एक झटके में टूट सकता था, विपरीत परिस्थिति में कठोर हो गया।अपनी कोमलता गँवा दी उसने।अब वह किसी को भी चोट पहुँचा सकता है।
कॉफी के दाने, देखने में तो छोटे से थे पर वे पानी में घुल गए और उन्होंने पानी के स्वभाव को बदल दिया। परिस्थितियाँ विपरीत होने पर भी उन्होंने अपना गुण नहीं छोड़ा बल्कि परिस्थिति को ही खुशनुमा कर दिया।
इसीलिए परिस्थिति कितनी ही विपरीत हो, जो इन्सान उस परिस्थिति को सबके लिए खूबसूरत बना दे, दर असल वही इन्सान सही मायने में विजेता माना जायेगा। जो टूट जाए, उससे उम्मीद करना बेकार है, जो कठोर हो जाए, उससे तो बिल्कुल ही बचकर रहना चाहिए। हमेशा उस इन्सान को अपना आदर्श बनाओ जो विपरीत परिस्थिति को भी अपने और अपने परिवार के लिए खुशनुमा बनाने का हौसला रखता हो।”
माँ की बातें सुनकर मेघा जैसे नींद से जाग गयी। उसे अपने लिए एक नयी दिशा मिल गयी ।कॉफी के उस प्याले ने उसकी सोच बदल दी थी। उसने कॉफी के प्याले को चूम लिया और माँ से लिपट गयी। मन ही मन में उसने कॉफी के गुणों को अपनाने की और ससुराल वापस जाने की ठान ली थी।
.. अर्चना अनुप्रिया।

Posted By Archana Anupriya

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