10/9/2016 12:35:00 AM
सुना है अंग प्रदर्शन मॉडर्न होने की पहचान है, सोच रही हूँ, जानवर इन्सान से कब आगे निकल गए ? अर्चना अनुप्रिया। I heard part of being a modern performance,identify I wonder, when the animal man get away? Archana Anupriyā.
Posted by: Archana Anupriya
10/9/2016 12:36:00 AM
मुसीबत तब नहीं होती जब 'दाल' मँहगी हो जाए... मुसीबत तब होती है, जब किसी के इरादे नेक ना हों, और उसकी 'दाल' गल जाए..। अर्चना अनुप्रिया। Calamity occurs, not when the 'Pea' mam̐hagī shines... Trouble is, when someone's intentions aren't good, Dal and his 'dust'..। Archana Anupriyā.
Posted by: Archana Anupriya
10/9/2016 12:37:00 AM
यारों, 'भूख' की परिभाषा भी अजीब होती है.. चूल्हा ठंडा होता है और पेट में आग लगी होती है...। अर्चना अनुप्रिया। Seriously, 'hunger' definition are very strange.. Oven cold and caught fire in the belly...। Archana Anupriyā.
Posted by: Archana Anupriya
10/17/2016 9:51:00 AM
दिवाळी दिवाळी हा उत्सव म्हणजे दीपोत्सव. दिव्यांचा उत्सव दिव्यांच्या असंख्य ओळी घराअंगणात लावल्या जातात. म्हणून तिचं नाव दीपावली. ह्या सणाची सुरवात वसुबारसेपासून योते आणि भाऊबीज साजरी केल्यानंतर दिवाळीची सांगता होते. दिवाळी येणार म्हटलं की आवराआवर रंगरंगोटी. नव्या कपड्यांची, दागिन्यांची, घरातील वस्तूची खरेदीची ही पर्वणी. फटाक्यांची आतिषबाजी अन चविष्ट दिवाळी फराळाचा स्वाद हे ह्या सणाच आणखी एक वैशिष्ट्य. वसुबारस ह्या दिवशी आपण गाय आणि वासरू ह्यांची पूजा करतो. त्यांना गोडाचा घास खाऊ घालतो. दुध-दुपत्यासाठी होणारा गायीचा उपयोग शेतीच्या कामी बैलाची होणारी मदत ह्या गोष्टी लक्षांत घेऊन त्या गोधनाची केलेलीही कृतज्ञता पूजा. धनत्रयोदशीला तिन्ही सांजेला केली जाणारी धनाची पूजा, नैवेद्याला ठेवला जाणारा धने-गुळाचा प्रसाद ह्याला ही फार मोठे महत्त्व आहे. ह्याच दिवशी एक दिवा तयार करून तो यमदेवतेसाठी लावला जातो. दक्षिण दिशा ही यमाची दिशा म्हणून त्या दिवशी त्या दिव्याची ज्योत ही दक्षिणेला केली जाते. नरक चतुर्दशी हा मुख्य दिवाळीचा पहिला दिवस. ह्या दिवशी पहाटे उठून अभ्यंग स्नान करायचे. नवीन
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10/18/2016 7:26:00 AM
भाई दूज का त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता है। यह त्योहार दीवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए। यदि बहन अपने हाथ से भाई को जीमाए तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन चाहिए कि बहनें भाइयों को चावल खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है। इस दिन गोधन कूटने की प्रथा भी है। गोबर की मानव मूर्ति बना कर छाती पर ईंट रखकर स्त्रियां उसे मूसलों से तोड़ती हैं। स्त्रियां घर-घर जाकर चना, गूम तथा भटकैया चराव कर जिव्हा को भटकैया के कांटे से दागती भी हैं। दोपहर पर्यन्त यह सब करके बहन भाई पूजा विधान से इस पर्व को प्रसन्नता से मनाते हैं। इस दिन यमराज तथा यमुना जी के पूजन का विशेष महत्व है
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10/25/2016 7:28:00 PM
फुटपाथ की दीवाली__ नगर को दीपक सजा रहे थे, प्रकाश अमावस को लजा रहे थे, सभी दुकानें भरी पड़ी थीं, हर तरफ रौशनी की लड़ी थी, लोग मस्ती में झूम रहे थे, एक दूजे संग घूम रहे थे _ तभी कुछ बच्चे दिखे फुटपाथ पर, अकेले से लगे ,थे सभी साथ मगर, अपलक दुकानें निहार रहे थे, आँखों से मानो पुकार रहे थे, सपने भरे थे पर पेट थे खाली, नयनों से मना रहे थे दीवाली, राकेट,बम,फुलझड़ी,अनार, दूर से देते उन्हें खुशियाँ हजार, आकाश में छूटते रंगीं नजारे, भुला रहे थे उनके दुख सारे, उछल उछल वे नाच रहे थे, कुछ गिरे पटाखे जाँच रहे थे, एक उनमें से टॉफी ले आया, बाँट-बाँट फिर सबने खाया, मिठास में घुल गया उनका जहाँ, था खाने को कुछ और कहाँ? फिर भी मगन हो गा रहे थे, 'लक्ष्मी' को जीना सिखा रहे थे, हतप्रभ सी मैं खड़ी रही थी, मेरी हैरान आँखों में नमी थी, समाज पर गुस्सा फूट रहा था, इस खाई से दिल टूट रहा था, चाहा रौशन करूँ रात ये काली, खुशियों से भर दूँ उनकी दीवाली, पास जा उनके मेरी दुनिया बदल गयी, मैं उन्हें साथ ले बाजार निकल गयी । अर्चना अनुप्रिया ।
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10/31/2016 9:45:00 PM
लौ से लौ मिलाते रहें.... दिया प्रेम का जलाते रहें... अपनापन की अवली से सजेगा जहाँ... प्यार का प्रकाश फैलाते रहें....। अर्चना अनुप्रिया।
Posted by: Archana Anupriya
10/31/2016 9:48:00 PM
फुटपाथ की दीवाली- नगर को दीपक सजा रहे थे, प्रकाश अमावस को लजा रहे थे, सभी दुकानें भरी पड़ी थीं, हर तरफ रौशनी की लड़ी थी, लोग मस्ती में झूम रहे थे, एक दूजे संग घूम रहे थे _ तभी कुछ बच्चे दिखे फुटपाथ पर, अकेले से लगे ,थे सभी साथ मगर, अपलक दुकानें निहार रहे थे, आँखों से मानो पुकार रहे थे, सपने भरे थे पर पेट थे खाली, नयनों से मना रहे थे दीवाली, राकेट,बम,फुलझड़ी,अनार, दूर से देते उन्हें खुशियाँ हजार, आकाश में छूटते रंगीं नजारे, भुला रहे थे उनके दुख सारे, उछल उछल वे नाच रहे थे, कुछ गिरे पटाखे जाँच रहे थे, एक उनमें से टॉफी ले आया, बाँट-बाँट फिर सबने खाया, मिठास में घुल गया उनका जहाँ, था खाने को कुछ और कहाँ? फिर भी मगन हो गा रहे थे, 'लक्ष्मी' को जीना सिखा रहे थे, हतप्रभ सी मैं खड़ी रही थी, मेरी हैरान आँखों में नमी थी, समाज पर गुस्सा फूट रहा था, इस खाई से दिल टूट रहा था, चाहा रौशन करूँ रात ये काली, खुशियों से भर दूँ उनकी दीवाली, पास जा उनके मेरी दुनिया बदल गयी, मैं उन्हें साथ ले बाजार निकल गयी । अर्चना अनुप्रिया ।
Posted by: Archana Anupriya
10/31/2016 9:51:00 PM
"वक्त का जादू" सारी उम्र गुजर जाती है घर बनाने में, पर बुनियाद हिलाकर घर तोड़ने में वक्त नहीं लगता.. मीलों तक कदमों से चलकर मंजिल मिलती है, पर स्वार्थ के लिए लक्ष्य को ठोकर मारने में वक्त नहीं लगता... दिल की कई धड़कनें जोड़कर रिश्ते बनते हैं, पर कड़वी जुबान को रिश्ते तोड़ने में वक्त नहीं लगता... जाने कितने पल गंवाकर रोटी कमाता है आदमी, पर भरे पेट से रोटी कूड़े पर फेंकने में वक्त नहीं लगता... कितनी इन्सानियत जोड़कर नाम पाता है आदमी, पर भ्रष्ट होकर अपनी औकात गिराने में वक्त नहीं लगता... बहुत उम्मीदें जोड़कर ख्वाब सजाता है मनु ष्य, पर धोखे के पत्थर से सपने तोड़ने में वक्त नहीं लगता... छोटी-छोटी साँसों की लड़ियों से बँधती है जिंदगी, पर पीठ के खंजर को जिंदगी खत्म करने में वक्त नहीं लगता.. अहंकार से,अभिमान से कितना ही ऊँचा उड़ ले इन्सान, पर वक्त को उसे जमीन पर लाने में वक्त नहीं लगता...। अर्चना अनुप्रिया।
Posted by: Archana Anupriya
10/31/2016 9:53:00 PM
विजयदशमी पर्व के उपलक्ष्य में- जब न्याय अन्याय से विजयी हो जाए, जब धर्म अधर्म पर हावी हो जाए, जब नैतिकता अनैतिकता को परास्त कर दे, और, जब हिंसा अहिंसा के आगे अशक्त हो जाए तब समझो कि विजय-पर्व आ गया....। लालसा जब संतोष के सामने हार जाए, हर भूख जब त्याग के नीचे कुचली जाए, नफरत जब प्रेम में पड़कर बदल जाए, और, स्वार्थ जब प्रेम की भक्ति से परमार्थ बन जाए, तब समझो कि विजय-पर्व आ गया....। किसी पुतले को जला कर क्या होगा? कुछ बदलेगा? क्या कुछ नया होगा ? हाँ, बुराईयों का अंजाम तो बयां होगा.. शायद, अच्छाई के लिए ही रावण जला होगा.. हम सीख लें इनसे और खुद को बदलें, सच्चाई को समझ लें न कि माया से बहलें, विजय-पर्व मनाने की सिद्धि तभी मिलेगी हमें, जब अंदर की अच्छाई जगा लें और बुराई से संभलें..। अर्चना अनुप्रिया।
Posted by: Archana Anupriya