DesiEvite Blog

Recently Posts

Categories

ओणम'

Friday, September 2, 2016 | 9:20:00 AM

ओणम

                      केरल के प्रसिद्ध त्योहार 'ओणम' के माध्यम से नई संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा आकर्षक 'ओणमपुक्कलम' (फूलों की रंगोली) बनाई जाती है। और केरल की प्रसिद्ध 'आडाप्रधावन' (खीर) का वितरण किया जाता है। ओणम के उपलक्ष्य में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इन प्रतियोगिताओं में लोकनृत्य, शेरनृत्य, कुचीपु़ड़ी, ओडि़सी, कथक नृत्य प्रतियोगिताएँ प्रमुख हैं।


पुराणों में ओणम : ओणम त्योहार सम्राट महाबली से जु़ड़ा है। यह पर्व उनके सम्मान में मनाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार 'वामन' ने चिंगम मास के इस दिन सम्राट महाबली के राज्य में प्रकट होकर उन्हें पाताललोक भेजा था।
एक पौराणिक कथा है । महाबलि नाम के एक राजा केरल में राज्य करते थे । वह एक आदर्श राजा थे । उनके राज में प्रजा सुखी थी । वह प्रजा से बहुत प्यार करते थे । वह न्यायप्रिय थे । उनके लिए सब बराबर थे । छोटे-बड़े का कोई भेदभाव नहीं था । सब जगह सुख और समृद्धि थी । महाबलि बहुत दानी थे । प्रजा उनकी प्रशंसक ही नहीं भक्त भी थी । प्रजा उन्हें भगवान मानती और उनकी पूजा करती थी । देवताओं से उनकी लोकप्रियता देखी न गई ।
एक षड्‌यंत्र रचा गया । राजा इन्द्र के अनुरोध पर विष्णु ने वामन अवतार लिया । वह ब्राह्मण का भेष बनाकर राजा बलि के पास आए । तपस्या करने के लिए राजा से तीन पग भूमि दान में माँगी । राजा बलि तो पहले ही से दानी और विशाल हृदय के थे ।
एक ब्राह्मण तपस्या के लिए भूमि माँगे और वह न दें यह कैसे हो सकता था । अत: राजा बलि ने बिना सोचे-समझे उस ब्राह्मण को जहाँ से वह चाहे, तीन पग भूमि दान लेने की अनुमति दे दी । उधर ब्राह्मण के रूप में स्वयं विष्णु भगवान थे । उन्होंने विराट रूप धारण कर लिया ।
एक पग में भू-लोक तथा दूसरे पग में स्वर्ग-लोक नाप लिया । तीसरे पग के लिए भूमि कम पड़ गई । राजा महाबलि अपने वचन के पक्के थे । कुछ तो करना ही था, तीसरा पग नापने के लिए राजा बलि ने अपना सिर विष्णु के सम्मुख कर दिया ।
अब विष्णु ने बलि से सब कुछ प्राप्त कर लिया । अत: विष्णु ने बलि को पाताल लोक में रहने की आज्ञा सुनाई । किन्तु पाताल लोक में प्रस्थान से पूर्व बलि को एक वर माँगने की अनुमति भी दी गई । राजा बलि अपनी प्रजा को बहुत चाहते थे । अत: उन्होंने वरदान माँगा कि, उन्हें वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के सुख- दु:ख को देखने का अवसर दिया जाए । महाबलि की प्रार्थना स्वीकृत हुई ।
अत: कहते हैं कि हर वर्ष श्रवण नक्षत्र में राजा बली अपनी प्रजा को देखने आते हैं । श्रवण नक्षत्र से मलयालम भाषा में ‘ ओणम ‘ नक्षत्र कहते हैं । उस दिन वहाँ की प्रजा बहुत श्रद्धा से अपने प्रिय राजा की प्रतीक्षा करती है । उस दिन सुख और समृद्धि का ऐसा वातावरण प्रस्तुत किया जाता है जिससे राजा महाबलि को यह प्रमाण मिले यहाँ की प्रजा सुखी और प्रसन्न है । ओणम के अवसर पर धरती को सजाया जाता है । रंगोली के द्वारा धरती माँ का श्रुंगार होता है ।
रंगोली से सजी धरती पर विष्णु तथा राजा बलि की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती है । ओणम के अवसर पर विष्णु के साथ – साथ महाबलि की पूजा भी होती है । बच्चे-जवान, तथा वुढ़े सभी इस दिन की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं । नए-नए वस्त्र सिलवाए जाते हैं । गीत, संगीत तथा विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन क्रिया जाता है । मंदिरों में उत्सव होते हैं । ओणम के अवसर पर नाव दौड़ तथा हाथियों का जुलूस लोगों को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं ।
राजा महाबलि लोगों के आदर्श थे । वह दानी थे । अत: ओणम के अवसर पर धनी लोग निर्धन लोगों को खुलकर दान देले हैं । ओणम के दिन लोक नृत्य भी होते हैं । कत्थकली नृत्य केरल का लोकप्रिय नृत्य है । युवतियाँ सफेद साड़ियाँ पहनती हैं और बालों पर फूलों की वेणियाँ सजाकर नाचती है । ओणम का त्यौहार सभी धर्मो के लोगों द्वारा परस्पर प्रेम और सौहार्द्र से मनाया जाता है ।

Posted By

User Comments

Leave a comment/Review?

  • Your IP is being logged.
  • Your e-mail address is used only for verification purposes only and will not be sold, or shown publicly.
  • HTML tags allowed.